बार-तेवारु की खुशियोंम समूण छै ज्वा

तैकि गरीबी अर मेरा हर्षम लकीर छै वा ।

मेरु उल्यारा प्राण कु गैल्या छौ स्यू फौजी

मनखि, देवता, भूत सब्यों दगडी नचै देन्द छौ मेरु औजी ।।


ठाकरु-ठाकरु कैकी औंद छौ चौक मा

ईष्ट कु ध्यान धरी शब्द की बढ़ै बजान्द छौ ।

पैली ठाकरु का मोर , बादम मेरा ठाकरु कु गौं जी

इना संस्कारू की झलक छै जैमा स्यू छौ मेरु औजी ।।


संग्रान्द से अर ब्यो तकम मेरा साक्षी च स्यू

मेरी गरीबी पर थेगला लगे अपणी गरीबी सिलि तैकि ।

बामण की चरयों बराबर कु भागीदार रै मेरा कार्योंम

पर कभी डैल नी लांगी तैन, इनु छौ स्यू मेरु औजी ।।


आज वक्त कुछ और वेगी, नई पीढ़ी कु दौर च

भुला कैकु कनकैक बुलाण सभी दीदा होंयाँ छन ।

ढोल-दमो गदरा फैंकी होटलुम जूठा भांडा होंयां रोजी

देखिकी रुणु आणु तौंसणी, तौंसे बढ़िया छौ मेरु औजी ।।


शर्म चोरी की होंद, मर्यादाम रैकी कैकी शर्म च

मैसे एक गलती जरूर वईं कि शैर एकि बिषर ग्यों ।

पर तुमल भी शैर एकि मेरा मोर पर कभी राँसु नी लगै

फिर भी मैं अपणों तैं सुलगाणु रयों कि इन छौ मेरु औजी ।।


नई पीढ़ी का लोगों तैं सोचण चैन्द आज

बामणल पूजा करी पर तैन भी तुमारा देबता नचैन ।

ढोली तुम भी शैरु तक पहुंच बढ़ा, क्वी नी अब गौं 

खूब देकी पठ्यावा तैकु, खुशी जता कि मोर आयूँ मेरु औजी।।


#दिगम्बर डंगवाल