लगी रैन्दी छै जख लगलियों पर लब्दयारी

बाँजी होंई छन सी डोखरी बरषु बटी हमारी ।

आज राजधानीम बटी देखणु छौं हैरा पौड़-पाखा

न जाणी कत्ती बरषु बटी नी देखी मीन पाड़ी बसग्याल ।।


गदरौं गदरौं आमुल भरी रैन्दी छै आमु की डाली

पर तोड़ण कनकैकी छै, फलाणी मौ देंदी छै गाली।

घुंडो घुंडो घास मा ढूंढणी मुश्किल वे जांदी छै दाणी

पर छोरों की टक्क लगी रैन्दी छै, आज खूब खाण अमाणी ।।


आज कख हरचिन हे पीत्रू हमारा स्यू दिन

कैकी डोखरियोंम आज लगुली की कल्पना कनै कन।

चोरी की खै जांदा छा कखडी, मुंगरी अर किन्नू

आज जीवन उजाड़ होयूँ, वे बसग्यालै याद बाकी छन।।


कखि लौकी त कखि चचेन्डा लटकणा रैन्दा छा

अबरी खैली हैंकी बेलौ क्या बणाण, डबड़ियाट नी छौ ।

माटा का कच्चा बौंड ओबरो पर बैठया रौंदा छा

पर, भरयाँ बसग्याल भी इन पाणी का रौ नी रिंगदा छा।।


गरीबी का सी दिन इथगा भी बुरा नी छा पीत्रू

पर तुमारू कमायूँ मैं अभागी ढकै भी नी सक्यों ।

बरषु बरष रजी खाई तुमल जौं डोखरियों मा

मैं इनु स्वर्ग छोड़ी यख नरग जनी राजधानीम अयों ।।


आज याद आणा जवानी का सुण्या बोल छन

कि भोल तुमारू च! अर हमुल बुढ्या वे जाण ।

या जन्म भूमि पीत्रू की खैरियो की याद रखयाँ

लाचार वे जैला जब शैरु मा, तुमल भीतरी-भीतर खुदैण।।


आज सब सच वेगी हे विधाता! पर कैकु सुणाण

तीन वास कु मकान राजधानीम, पर व्यर्थ सी ह्वेगी।

मेरु आणु-जाणु भुयाँ बटी छत तक रैगी पीत्रू

पर देखणु छौ, डांडियों फिर से बसग्याल चढ़गी हपार ।।


#दिगम्बर डंगवाल