मी दगड आई छै रे डोल्ला तूभी ये गौं

मेरी स्वीणों की समूण छैं तू, त्वे कनै बिसरौं ।

लोग गै होला मैंगी गाड़ियों पर बैठीकी सैसुर

पर त्वे दगडी बितायां पल मैं कभी न बिसरौं ।।


छा जुड़याँ वचन जू लाखड़ा मा बैठी औण का

आज उंकि कसम लुव्वा दगड क्वी कनकैक निभौ ।

फेरयाँ सात फेरों अर वचनु की याद छन त्वेमा

ब्वे का वचन अर बाबू का संस्कारू कु साक्षी छैं तू ।।


ये गौंमा मेरी पैली पैली छत छै रे डोल्ला तू

मेरी मन की ब्यथों कु खूब जाणकार छैं ।

कदगा भावना उमड़ी छै मेरा मन मा त्वे पर बैठी

मेरी हर खैरी मा, ब्वे-बाबू की लाज बणी छैं तू ।।


आज मुंड फुलगी पर त्वे देखी फिर रँगस्याणु छौं

आज त्वे विदा कन करुं मन ही मन तंगत्याणु छौं ।

जा! ब्वे-बाबू का दिन्या वचनु की शौं फिर से निभै 

आज त्वे मैं बेटी का सैसुर अपणु समझी पठेणु छौं ।।


#दिगम्बर डंगवाल