मुंड फुलदा तक मी शैर रयों, आज बरषु बाद फिर गौं अयों ।
देखिकी बाटू खन्द्वार खुदे मन, यादूमा बैठी यकुली रोणु रयों ।।
न जाणी कदगे देर रोयों, पर क्वी आँसू पोछण भी नी आई ।
माटू मुठ्ठी पर बौटिकी आँखयो आँसू अर बांजी पुंगडियो हेरदी ग्यों ।।


अदबाटा बैठी की, इन लगी जन मन से मी हारी ग्यों ।
मोटरू कु हिटवाल मैं खुट्टा तक साम्मा नी धर सक्यों ।।
पर याद आणी छै बालापन की बिट्टो मारी छलांग
तौं ही हौसलों से खन्द्वार कूड़ी की देल तक पहुंची ग्यों ।।


खुंटी अर देल की ढूंगी देखी याद ब्वे बाबू की आई ।
मारी की अँगवाल तौं पर मिन अपनी मन की ब्यथा सुणाई ।।
बरणाणु रयों अफीमा कि कन व्यां तुमारा हड़गा ढूंगा सी ।
मोल माटन लिपि भी नि सक्यों, इनी मैं कु औलाद व्यों ।।


जौं देलियों मा कभी हंसदा छा फुलार, हे विधाता !
यूं पैसों का फेर मा तैन मैं बुद्धि से अपाहिज कर दिन्यों ।।
मैं जवानी का जोश मा ब्वे बाबू तैं न जाणी क्या-2 बोल्दी रयों।
आज बुढापा-मा यूँ ढूंगीयों की कीमत मैं भी जाणी ग्यों ।।


चड़चड़ाई होला इनी ब्वे बूबा, जन-ई द्वार चड़चड़ाणा आज ।
टूटी होला ऊँका भी हौसला जन दरवाजा छोड़णा छन काज ।।
आज लगद, कि मैं जीवन हकीक से बहुत दूर रैकी जी ग्यों ।
मैं भी जवानी का बगदा पाणी मा टुटयू पत्ता से बगदी रयों ।।


अब कैतें लगाण धै हे विधाता ! आज यख क्वी नी रयूँ ।
कैमा सुणो कि थोड़ा सी पौंण का बाना कथगा ख्वे ग्यों ।।
खुल्ली डुल्ली जगा छोड़ी की, किराया भितरु पर घुचरयों ।
अर गमलों पर लगुली उगोंण का बाना चलदी पुंगड़ी छोड़ी ग्यों।।


# दिगम्बर डंगवाल