कख गैनी काकर की उ पुराणी नसूड़ि अर लाट
जौन गल्या ब्लदू मा हल्या धरदू छौ चौड़ी -2 फाट ।
बांजी पड़ी छन स्यू पुंगड़ी , बल्दू का भी ढेगिन ठाठ
हरयां -भरयां छा जुगौं , आज बणिया छन जन राठ ।।

देखी की बांजी पुंगड़ी , याद आणु स्यू गल्या ब्लद आज
दिखेणा कु झरझरु छौ अर जोड़ी मा भलू लगदु छौ साज ।
पर डरदू छौ हल्या भैजी , गल्या बल्दे आपणी छै चाल
दैण पालु ह्वेकी भी , हल्या भैजी बायीं बाथन्दू छौ पाल ।।

पुचकारी -2 मरदू छौ हल्या तैपर हल्की सी ठसाक
जोर करी जु बोलेली तैकु त फट लगजांदी छै नाक ।
अग्ने का द्वी धुंडा भुयाँ , हल्या की रुक जान्दी छै सांस
हल्या फट हौल छोड़ी कन भागदू छौ फिर लेणा घास ।।

कख गैनी उ दिन हे विधाता ! कन ह्वे पुंगड़यों कु निराश
बरषु बरष खाई हमारा पूर्वजुन,हम काटणा छाँ जख घास ।
देखी की रोणा होला पितृ हमारा,कि क्या छै हमारी आस
जख जौ- ग्यों की बाल्डी होंदी छै,तख ज्मया कांडा अर घास ।।

# दिगम्बर डंगवाल