क्या कहूँ कितने अरमानों को भुलाया है मैंने । पीकर घूंट सब्र का जी तो रहा हूँ जिंदगी मैं जिंदगी ने कहाँ कहाँ रुलाया किसी से नही बताया मैंने ।
रूला के हँसा दिया इसी उलझन ने मुझे फंसा दिया टूट कर बिखरा हूँ पर टूटने की आह नही की मैंने । कोशिश पूरी की लड़खड़ाते लड़खड़ाते जिंदगी में तन्हा कहाँ कहाँ पड़ा हूँ ये किसी से नही बताया मैंने ।
सहारा अगर नही मिला कोई तो शिकायत क्या खुद रो लिए हँस लिए पर किसी को रूलाया नही मैंने । सपनों ने मरने न दिया तो मौत से शिकायत क्या आवारा कहाँ कहाँ भटका हूँ किसी से नही बताया मैंने ।
तुम और तुम्हारी दुनियां से परे जाने लगा हूँ मैं दर्द को सहन कर जिंदगी जीना सीख लिया मैंने । आघोष में नही जिंदगी तेरे खिलाफ मौन हूँ तूने कहाँ कहाँ मुझे पटका किसी से नही बताया मैंने ।
#दिगम्बर डंगवाल
लोगुन पीनी होलु घाट घाट कु पाणी दादू मीन छोया दुलियों कु पाणी पीनी । फिर भी अफकू मैं सट नी गिण्दू दादू पर हैंकु मैं पहाड़ी समझी लाटू किले चितांद ।।
स्या तैकी समझ च मैं क्या बोली सकदू जौंसणी स्यू घाट गिण्णु तौं मैं पणद्यारोंमा भी नी गिण्दू । पर क्यकन मेरू पहाड़ नेतौंन खयाल दादू नीतर जदगा स्यू चौल नी खांदू! तैसे ज्यादा मैं उचाणा मा रखदौं , फिर भी अफकू मैं सट नी गिण्दू दादू पर हैंकु मैं पहाड़ी समझी लाटू किले चितांद ।।
देखी होला तैन मनखी लाख, मैं इनकार नी करदू पर इन कन सभी तैसणी चकडित ही मिलिन ? मेरु व्यक्तित्व पाणी सी सरल च दादू पहाडू पर मैं गर्जना करी की सैरु मा समझ से बगदौ, फिर भी अफकू मैं सट नी गिण्दू दादू पर हैंकु मैं पहाड़ी समझी लाटू किले चितांद।।
माणा, चलिगी छा तुमरा दे दादा सैरु मा बीजां पहली पर अब पहाड़ी भी उड़्यारों पर नी रै ज्ञेनी । बस नी छोड़ी सक्यां हमत अपणा संस्कार तुमारी तरौं दादू दे दीना आज भी दाली की मुट्ट तुम जबरी औन्दा घौर, फिर भी अफकू मैं सट नी गिण्दू दादू पर हैंकु मैं पहाड़ी समझी लाटू किले चितांद ।।
कमाई होला तुमन पैसा सैरु मा अफकू बीजां पर वेसे ज्यादा धीबड़ा लगयां तुमारी कुड़ी पर यख । मैकू हुई च मनख बाघे डेर यूँ बांजी कुड़ियों पर दादू त-रखी च राग जाग और लोग सोचणा की मैकू लोभ होयूँ, फिर भी अफकू मैं सट नी गिण्दू दादू पर हैंकु मैं पहाड़ी समझी लाटू किले चितांद।।
केक होण तुमारू दिमाग गरम सोचिकि यखा का बारामा दिमाग त ठण्डन चचगारेगी तौं सीमन्ट का भितरूमा मैं फिर भी ये बुढ़ापामा तुमसे ठीक छौं दादू मैं फुक्यों घामन यख और तुम तख मैं देखी फुक्यानदीरा, फिर भी अफकू मैं सट नी गिण्दू दादू पर हैंकु मैं पहाड़ी समझी लाटू किले चितांदू ।।
लोगुन पीनी होलु घाट घाट कु पाणी दादू मीन छोया दुलियों कु पाणी पीनी । फिर भी अफकू मैं सट नी गिण्दू दादू पर हैंकु मैं पहाड़ी समझी लाटू किले चितांद ।।