चैतै की मैनी कुभी नी रैगी कैमा उनु उलार,
बेटीयो कैं भी पहाड़ी मैत्यौं से नी रैगी अब वु प्यार ।
सूनी ह्वेईं छन डिंडाली अर ओबरों की डेळ,
बरषु बटी नी दिखेणु गौं मा क्वी बाळु फुल्यार ।।

कभी वक्त छौ, बेटी बैठी रौंदी छै मैत्यों का सास,
आला मैती लेणा मैकु लगीं रौंदी छै चैत्या आस ।
आज गौं हुयाँ छन खाली, बुढय्या बैठयां छन उदास
कुड़ियों पर धिबाडा माटू चाल्णा पुंगडियों कु होयूँ निराश ।।

शैरू की चकाचौंद मा क्वी नी रयूं अब अपणु खास,
अपणे हुयाँ छन बिराणा त बिराणो से क्या कन आस ।
थक जांदन आँखा बाटू हेरी-हेरी, मन ह्वे जांदू निराश
नी आण कैन, जाण्दू छौं ! पर पापी मन कनकैकी बुझाण ।।

फ्योंली का फुलू देखी आँखी रगरयाणी छन बेटा
डाल सकदू तोड़ी की, पर हाथी तंगत्याणी छन बेटा ।
त्वे त याद भी क्या ही होला बानी बानी का वु फूल अब ?
तैन त अपणा बच्चों मा भी ई त्यौहार नी बतै होला ।।

हिकमत होंदी मैं पर त बेटी मैत हिटालीकी लौन्दू मैं
चैतै की मैनी कु उलार अर दोण कल्यो पठै दैन्दू मैं।
तेरा पिछनै स्या भी निरमैत्या सी हुईं च अब बेटा
फोन पर पूछदै बोल्दी, फुंड फूंका क्वी कैसण क्या दैन्दू ।।

त्वे त शैद अब नी औंदी होली ब्वे-बाबू की याद,
पर बेटी कू मन मैत औणा कन नी खुदैन्दू होलू ।
ब्वे-बाबून त अब ज्यादा नी रौणु बेटा तुमरा सास
पर बैणी की मरदी-2 तक राली भयों से आस ।

ये बरस तू चैतै की मैनी मा बाल-बच्चों लैकी एई,
बैणी का सैसूर तैंकु कुछ भेंट लैकी लेणा कु जैई ।
बरषु बटी क्वी नी गै तैमा, स्या हुंई होली निराश,
चैतै की मैनी बेटा, हर बैणी की भायों से रैंदी आस ।।

बच्यूं रौलु त देख्यालु मैंभी औण वाली फूल्यार,
नै- नातियों दगड़ी कन सजलु चैत कु त्यौहार ।
बेटी भी देख्याली ज्यून्दू मुख ब्वे-बाबू कु एंसू,
घौर औणाकु यूँ दानी आंख्यों पर करदै बेटा तू उपकार ।।

#दिगम्बर डंगवाल