जग्यु रयौ जैंका बाना मुछालु सी रात भर
तैंकि नजरुमा मी बस कालू मुंडगु ही रयौ
खीसा तक झाड़िकी दिखैनी जैं सणी मिन अपणा
पर, विंकु मी बिराणु ही बणायू रयौ ।।


आज समझली मिकू, भोल समझली मिकू ...
मैना अर मैना का साल गणदी ग्यौ
घासा का भारा तक जैंका बोल्या पर काटी ग्यौ मी
पर, विंकु मी बिराणु ही बणायू रयौ ।।


क्वी इनु कौथिग नी जख तैंका बाना नी ग्यौ मी
क्य बतों कि कत्ती गदरौं छलेयूं छौं
क्वी इनु झूठ नी जू तैं पौंण का बाना छोड़ी हो
पर, विंकु मी बिराणु ही बणायू रयौ ।।


सची नी आलु तैं सणी कबी मेरू ख्याल
अपणा मन ही मन खबताणु रयौ
हर छोटी बड़ी अपणी समझी जोड़दी रयौ जैंमा
पर, विंकु मी बिराणु ही बणायू रयौ ।।


तैंकु छोट्टू छोरा सी जन फतेयु रयौ भैजी मी
मैं चौकलेट की सी आस-मा रिंगदी रयौ
कोदा-झंगोरे न जाणी कदगा दैं कुठे गी स्या मिमा
पर, विंकु मी बिराणु ही बणायू रयौ ।।


जब मिलदी छै कन मिट्ठी छविं लगांदी छै
उच्ची ढूंगी मा बैठिकि दगडी टांगड़ी हिलांदी छै
कनकैकी रौलु तेरा बिना, जैंमा बोल्दू छौ मी
आज समय बदलगी, ढूंगी भी बदलगी.. भैजी
अनुभव मेरु दिन्यु अर भावना हैकेकी ह्वेगी ।।


भरी जवानी मा इन लग्णु जन रोजगार छीनगी
समय कु पाबन्द मी, पागल ह्वे ग्यौ
आज सामणा-सामणि मुखमा पल्लू ढाकी जांदी स्या
त बता क्या समझू मी ? विंकु मी बिराणु ही बणायू रयौ ।।




#दिगम्बर डंगवाल